उत्तराखंड में चल रहे 38वें राष्ट्रीय खेलों की तीरंदाजी प्रतियोगिता के फाइनल मुकाबले में बेटियों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सोने और चांदी पर निशाना लगाया। इन तमगों को हासिल करने के पीछे इन बेटियों की कड़ी तपस्या ही नहीं बल्कि उनके पिता का तप भी है। कर्ज उठाकर बेटी को धनुष दिलाने से लेकर उनके सपने साकार करने के लिए दिन-रात मजदूरी में पसीना बहाने की कहानी ने उनके तमगों की चमक को और भी आकर्षक बना दिया है।
वह महिला रिकर्व व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली झारखंड की अर्जुन अवार्डी व पद्मश्री दीपिका कुमारी हों या फिर रिकर्व मिक्स टीम में रजत पदक पर निशाना लगाने वाली हरियाणा की भजन कौर व पारस। राष्ट्रीय खेलों में हासिल उनकी उपलब्धि के पीछे संघर्ष, परिश्रम और अभ्यास की एक लंबी यात्रा है।
रिकर्व मिक्स टीम में रजत पदक जीतने वाली हरियाणा की ओलंपियन भजन कौर बताती हैं कि 12 साल की उम्र से ही तीरंदाजी करती आ रही हैं। वह पहले जहां रहती थी वहां कोई प्रशिक्षक नहीं था। वहीं, रिकर्व महिला टीम में कांस्य पदक जीतने वाली कीर्ति बताती हैं कि वह हरियाणा के जींद की रहने वाली है। उसके पिता विजय छोटे किसान हैं और मां गुड्डी गृहणी हैं। धनुष लेने के लिए उसके पिता के पास पैसे नहीं थे। ऐसे में करीब तीन लाख रुपये लोन लेकर उन्होंने उसे रिकर्व दिलाया।